संकष्टी चतुर्थी, जानें पूजा विधि और मंत्र समेत पूरी जानकारी
सर्वविदित है की भगवान् गणेश प्रथमपूज्य है और किसी भी धार्मिक आयोजन में गणेश जी का ध्यान करना वांछनीय है I यूँ तो गणेश पूजन सभी मौकों पर होता ही है पर कुछ पर्व के दिनों पर गणेश जी का ध्यान करना लाभकारी और सफल होता है I ऐसे ही कुछ पर्वों में से संकष्टी चतुर्थी जिसे आम बोलचाल की भाषा में सकट चौथ के नाम से भी जाना जाता है, को ख़ास महत्व दिया गया है I
यूँ तो हर महीने की चतुर्थी तिथि गणेश जी को समर्पित है, शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायकी चतुर्थी कहा जाता है और कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है I चैत्र मासी संकष्टी चतुर्थी को कुछ लोग चैत्र मासी गणेश चतुर्थी भी बोलते है I
जैसे की नाम से ही पता चलता है की संकष्टी चतुर्थी सभी संकट और कष्टों को दूर करने वाली स्वयं सिद्ध तिथि है I पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन गणेश जी का पूजन करना और उपवास रखना सभी संकट और कष्टों से मनुष्य को उबार देता है और गणेश जी का विशेष कृपापात्र बनाता है I
आइये जानते है संकष्टी चतुर्थी के दिन पूजन और व्रत करने की विधि:-
- सर्वप्रथम नित्य कर्म से निवृत हो कर शुद्धचित्त से गणेश जी का ध्यान करना चाहिए, यदि संभव हो तो साफ और धुले हुए लाल वस्त्र धारण करें I
- गणेश जी फोटो या मूर्ति स्थापित करें और शुद्ध जल से स्नान कराये I एक शुद्ध घी का दीपक प्रज्वलित करें I
- गणेश जी को सिन्दूर बहुत ही प्रिय है इसीलिए सिन्दूर अर्पित करे फिर गणपति को जनेऊ धारण कराये I
- रोली, मोली,चावल, सुपारी, दूर्वा अर्पित करें I
- मोदक गणेश जी को बहुत ज्यादा प्रिय है, मोदक का नैवेद्य अर्पण करना ना भूलें I इस प्रसाद को लोगो में बाँट दे I
- गणपति अथर्वशीर्ष, गणेश सहस्त्रनाम का पाठ करें, अगर संस्कृत नहीं आती हो तो गणेश चालीसा का पाठ करें I
- व्रत के दौरान शांत चित रखे, किसी पर क्रोध न करें, सात्विक आचार-विचार रखें और ज्यादा से ज्यादा समय गणपति के ध्यान में लगाए I
- चंद्रोदय के पश्चात् चंद्र देव को अर्घ्य दे कर व्रत खोले, ध्यान रखे की इस दिन किसी भी प्रकार का तामसिक भोजन वर्जित है, शुद्ध और सात्विक भोजन (बिना लहसुन-प्याज) गणेश जी का प्रसाद मान कर खाएं I
- किसी प्रतिष्ठित गणेश मंदिर जाना और गरीबों की मदद करने से व्रत के पुण्य में कई गुना बढ़ोत्तरी हो जाती है I
- विशेष: जमीकंद जैसे की मूली, गाजर, आलू का उपयोग पूर्णतः निषिद्ध है I
- संकष्टी चतुर्थी के दिन निम्नलिखित मंत्र का जाप विशेष फलदायी है I
ॐ गजाननं भूत गणाविद सेविंत, कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम्
उमासुतं शोक विनाशकारकम्, नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम् !!
भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के विवाह में गणेश जी को उपेक्षित कर के सभी देवता भगवान् विष्णु की बारात में चले गए I इस से रुष्ट हो कर गणपति ने अपनी सवारी मूषकराज क्रोंच को चूहों की बहुत बड़ी सेना के साथ भेज दिया I
संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा कुछ इस प्रकार है I
इस मूषक सेना ने बारात मार्ग की सारी ज़मीन को खोद कर खोकला कर दिया जिस से बारात में जा रहे सभी देवताओं के रथ जमीन में धंस गए और बारात वही अटक गयी I भगवान विष्णु को जब इस संकट के बारे में पता लगा तो उन्होंने तुरंत गणेश जी को मना कर ससम्मान बारात में शामिल करने का निर्देश दिया I
काफी मान मनोव्वल के बाद गणपति बारात में शामिल हुए और खुद की शक्ति से देवताओं के ऊपर आये संकट का निवारण कर दिया I
स्वभाव से सरल और भक्तों के लिए सुलभ है गणपति इसीलिए गणेश आराधना कभी व्यर्थ नहीं गयी I गणपति खुद के भक्तों के ऊपर आने वाले सारे संकटों और विघ्नों का हरण कर लेते है इसीलिए गणेश जी को विघ्नहर्ता के नाम से भी पूजा जाता है I
जय विघ्नहर्ता
जय गणेश