एक ही समय पर जन्मे दो बच्चों का जीवन अलग क्यों होता है?

एक ही समय पर जन्मे दो बच्चों का जीवन अलग क्यों होता है?

ज्योतिष शास्त्र एक सागर है जिसको पूर्ण रूप से समझ पाना या फिर उसकी व्याख्या करना किसी भी व्यक्ति के लिए उतना ही कठिन है जितना की सागर में मोती ढूंढना| हम सब इस बात से भली-भांति परिचित है की वैज्ञानिक रूप से उन्नत होने के बाद भी मानव सागर के रहस्यों पर आज भी शोध कर रहा है, यही सिद्धांत ज्योतिष रुपी सागर पर भी लागू होता है|

मानव नैसर्गिक रूप से जिज्ञासु प्रवृति का प्राणी है और आदि काल से ही अंतर्मन में भविष्य के रहस्यों की गुत्थी को सुलझाने की भावना लिए हुए है| इस कड़ी में ज्योतिष शास्त्र का योगदान उल्लेखनीय रहा है किन्तु कुछ यक्ष प्रश्न आज भी मानव के सामने ज्यों-के-त्यों खड़े है, इन्ही प्रश्नो की श्रंखला में सबसे ऊपर है की एक ही समय पर जन्मे दो बच्चों का जीवन अलग क्यों होता है?

एक ही समय पर जन्मे दो बच्चों का जीवन अलग क्यों होता है, इसके कुछ कारणों का ज्योतिष के प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख मिलता है| हालांकि इन ग्रंथों की उचित व्याख्या करने के लिए ज्योतिषी का अनुभवी, तर्कसंगत, विद्वान और शोधार्थी स्वभाव का होना जरुरी है वरना अर्थ का अनर्थ होने में समय नहीं लगेगा|

एक ही समय पर जन्मे दो बच्चों का जीवन अलग होने का मूल कारण:

१. समान समय किन्तु भिन्न स्थान

कुंडली बनाने के लिए जन्म-तिथि, जन्म-स्थान और जन्म-समय की आवश्कता पड़ती है| इन तीनो चीज़ो के बिना कुंडली का निर्माण असंभव सा है| जब किन्ही दो कुंडलियों में जन्म-तिथि और जन्म-समय सामान हो पर जन्म-स्थान भिन्न हो तो दोनों कुंडलियों में भी दिन-रात जितना फ़र्क़ होगा| जब कुंडली में ही फ़र्क़ होगा तो निश्चित रूप से उनके भाग्य और कर्मों में भी फ़र्क़ होगा|

२. जन्म-तिथि, जन्म-स्थान और जन्म-समय समान फिर भी भाग्य अलग क्यों?

ज्योतिष के अनुसार किसी भी व्यक्ति के भाग्य में ३ चीजों की महत्ता होती है, प्रारब्ध, माता-पिता और गर्भाधान|

  • प्रारब्ध : पिछले जन्मों में मनुष्य द्वारा किये गए कर्मों के अनुसार ही उसे फल भोगना पड़ता है| महाभारत में भीष्म पितामह ने बाणों की शैय्या पर लेटे हुए भगवान् श्री कृष्ण से प्रश्न किया था की उनके भाग्य में ये दुःख क्यों आया तो भगवान् श्री कृष्ण ने बताया की पूर्व जन्म में उनसे एक अपराध हुआ था उसी के फलस्वरूप उन्हें ये दुःख भोगना पड़ रहा है| इस से ये बात साफ़ हो जाती है की सिर्फ इस जन्म का ही नहीं अपितु पूर्व जन्मों के कर्म भी मनुष्य के भाग्य का निर्धारण करते है और समान कुंडली वाली व्यक्तियों के पूर्व जन्मों के संस्कार भी एक से हो ये असंभव है इसीलिए उनके भाग्य में भी अंतर आता है|
  • माता-पिता: व्यक्ति की कुंडली में उसके माता-पिता के भाग्य का भी योगदान होता है, यदि माता-पिता की कुंडली में श्रेष्ठ संतान का योग है तो जातक को श्रेष्ठ भाग्य भोगने को मिलता है| अगर ये ही जातक किसी ऐसे माता-पिता के यहाँ जन्म लेता है जिनके भाग्य में भाग्यहीन संतान का योग है तो जातक का भाग्य भी कमज़ोर हो जायेगा|

अब यहाँ प्रश्न ये उठता है की अगर जुड़वां संतान हो तो भी भाग्य अलग क्यों होता है? जुड़वां बच्चों में जन्म का समय समान हो ही नहीं सकता थोड़ा सा फर्क होगा ही और ये समय का थोड़ा सा फ़र्क़ ही भाग्य निर्धारण में बड़ा फ़र्क़ बन जाता है|

  • गर्भाधान: ज्योतिष शास्त्र में गर्भाधान को भी महत्व दिया गया है| चूँकि समान समय पर जन्म लेने वाले

बच्चों का गर्भाधान समय भी समान हो ये लगभग असंभव सा ही है| ज्योतिष शास्त्र में समय का सबसे ज्यादा महत्व है और समय में ज़रा सा भी फ़र्क़ कुंडली में बड़ा फ़र्क़ बन जाता है|

इन सबके अलावा व्यक्ति का स्वाभाव भी भाग्य निर्धारण करता है, समान कुंडली वाले लोगो का स्वभाव भी अलग होगा| पुरुषार्थी स्वभाव वाला मनुष्य अपनी मेहनत, इष्ट साधना, पुण्य कर्मों, बुजुर्गों-संतो के आशीर्वाद और सकारत्मक दृष्टिकोण को सीढ़ी बना कर भाग्य का निर्माण कर सकता है|

अच्छे ज्योतिषी online मार्गदर्शन या फिर मिलने का समय लेने के लिए website पर दिए गए नंबर पर कॉल कर सकते है| फॉर्म भर कर भी मार्गदर्शन ले सकते है|


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